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________________ वीरवारण वडेरा छौ । आपरो कीयो कछू लायक छै । तरै वीरमदेजीन हैसो पांचमौ कर दीयौ। . तरै वीरमदेनी पड़ेरणै राजस्थांन घणा रजपूतांसु सुषै राज करै छै । वडेरणो गांव सुहांणासु सातां कोसां उपरा छ । __ अबै कितराइक दिन वितीत हुवा । तरै वीरमदेजीरा लोक रजपूत जोयारी धरतीरो विगाड घणो करै । तरै देपाल नै सगला क़हण लागा । श्रा थे किसी उपाधि घाटी । वीरमदेजीरा लोक दीठे दावधर । तीरो विगाड निपट घणो करै । तरै देपाल जोईयो गाडी जोतरि नै गांव वडेरणै वीरमदेजीनै ओलभो देणनै आया । आगै वीरमदेजी मांचे बैठा दाड़ी संवराता था । सो देपालजी आयनै जुहार कीयौ । सो वीरमदेजी मांचे बैठां होज जुहार कीयो । सांमो मांचो पडीयो थो। तठे देपालजीने कह्यो थे ब्रैसो। सो देपालज़ी मन मांहि अटक लीयो । जे धरती मांहरी मांहि रहै नै मो आयां उठि उभो न हुवै । तरै देपाल बोलीयो । वीरमदेजी म्हेतो थासु काई भुंडी न कीधी छै सो थे मांहरी धरतीरो विगाड करावो । तिणरी साप । नीसांणी वीरम असी तो साझि कै किते गुनह जाय खवंदे । मुणे सलष वनीडं कीया हुरतांण फुरंदे ॥ हैकण थेक न मावही दुय खग लोहंदे । हेकण झल न मावही दुहुँ सीह मुकंदे ॥ जोईयां भाल पहडीयै काम चालै मदे । । दुय घर डायण परहरै गांवै विढहंदे ॥ वार्ता देपाल वीरमदेजीनै कयौ। थे मांहरी धरती माहे रहिनै मांहग हीज देसरो विगाड करावी छो। सो भली वात । एक घर तो डाकणि हुवै जिका ई परहरै छ। तरै वीरमदे कयो देपालजी थे कहो तिका वात साची । जो डाकणि भूषी हुवै बाहिरलो न मिले तरै घररा नै पायक न पाय । तो बीजारी किसी वात । नीसांगी तिण समीयारी। नीसांणी वडा दलै देपालदे हर पाल सरोवै । मदो लूणे हंदीय सवल जांधोवै ॥ मुह अपै वीर मराठ वडए नलहन रोवै । डायण किण ही न परहरै जो भूपी होय ॥* * यह नीसांणी यां चीखाण में प्रकाशित नीसांगणी सं० ४३ और ४४ परिवर्तित रूप हैं ।
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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