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________________ पत्रं दशम इन्द्रिय-निग्रह प्रिय बन्धु ! तुम्हारे विचार मेरे तक पहुंचे है। उनमे तुमने जो जिज्ञासाएं की हैं, उनसे परिचित हुआ हूँ। उनके सम्बन्ध मे मेरे उत्तर निम्नोक्त है । प्रश्न-एक तरफ अपने महर्षियो ने इन्द्रियो को जीतने के लिए कहा है और आप इन्द्रियो को जागृत रखने की बात कहते हैं, तो ये दोनो बातें एक ही है या दो। उत्तर-हमारे महर्षियों ने इन्द्रियो को जीतने के लिए कहा , है, वह बिल्कुल यथार्थ है। इसका तात्पर्य यह है कि इन्द्रियो के विषयों में मुग्ध नहीं बनना दूसरे शब्दो मे कहे तो कोमल स्पर्श की आसक्ति, मधुर स्वाद की आसक्ति, सुगन्ध को आसक्ति, सुन्दर रूप की आसक्ति और मधुर स्वर की आसक्ति को जीत लेना-यही इन्द्रियो पर विजय है । विषयो की लुब्धता कितने भय कर परिणाम लाती है, उसके लिये हाथी मत्स्य, भ्रमर, पतग और सर्प के उदाहरण दिये गये है-वे इस प्रकार है जगली लोग हाथी को पकड़ने के लिए कृत्रिम हथिनी को एक जगह खडी करते है और वहाँ तक पहुँचने के मार्ग मे एक बहुत बड़ा गड्ढा खोदकर उसे बाँस और पत्तो से ढक देते है। हाथी स्पर्श-सुख का अत्यन्त लोलुप बनकर हथिनी को देखते ही उसकी तरफ दौडता है। इस दौड़ मे उसे दूसरी कोई बात का भान नहीं रहता। परिणाम स्वरूप वह गड्ढे मे गिर जाता है और बन्धन मे पडा जीवन भर परवशता भोगता है।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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