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________________ ५० स्मरण कला प्रथम पत्र-मोर, महाजन, सिंह, शीशी, प्याला, डोरी, - घडियाल, गीदड । द्वितीय पत्र-आम, खांड, कुर्ता, पिन, कपास. शशक, कौवा, सुपारी । तृतीय पत्र:- लवग, लापसी, हनुमान, बादल, दरिया, लौकी, कद्, भेड, कातर । अब जितने शब्द बराबर क्रमश लिखे गये है, उन हरेक को दो अंक (नम्बर) दो, गलत शब्द को और गलत क्रम से लिखे गये शब्द को अंक मत दो। इस रीति से दर्शन-परीक्षा के ४८ अंक और श्रवण परीक्षा के ४८ अंक होगे। इनमे से जिनमे अधिक अक पाये है उसी इन्द्रिय द्वारा विषय अच्छी तरह ग्रहण होता है । यह समझ लेना चाहिए । चर्या का सजगता से अनुसरण करते रहना तथा एकाग्रता का अभ्यास चालू रखना। मगलाकाक्षी धी. मनन साधना और सिद्धि, शक्ति और साधन, इन्द्रियां यन्त्रो के समान है; उनकी स्वच्छता उनका उपयोग, तुलना के द्वारा अनेक तारतम्य के ज्ञान की साधना, दर्शन परीक्षा व श्रवण परीक्षा ।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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