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________________ १२ स्मरण कला मछली को पकड़ने वाले मजबूत डोरे के एक किनारे लोहे का कांटा बांध कर उसमे एक मास का टुकडा फंसाकर उसे पानी मे डाल देते है, उसे देखते ही स्वाद लोभी मछलियाँ एकदम उस पर झपटती है और उसे खाने का प्रयत्न करती है। तब काटा उनके गालो मे चुभ जाता है, जो अन्त में मौत का कारण बनता है। भ्रमर को सुवास की बड़ी आसक्ति होती है। वह कमल की सुगन्ध मे मस्त बन जाता है। इस मस्ती मे उसे भान भी. नही रहता कि अभी सन्ध्या हो जायेगी तथा कमल की पखुड़ियाँ बन्द हो जायेगी और मैं भो उसमे बन्द हो जाऊँगा । वास्तव मे सन्ध्या होते ही वह उसमे बन्द हो जाता है। अब कमल को छेद कर बाहर निकलने की अपेक्षा वह यों विचार करने लगा कि रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभात, भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पकजश्री । रात्रि तो अभी बीत जाएगी और सुन्दर--सुखद प्रभात उगेगा । उस समय तेज से चमकते सूर्य का उदय होगा । तब कमल पूरा का पूरा खिल उठेगा। बस ! उसी समय मैं उड़कर बाहर निकल जाऊँगा। इन विचारो मे वह समस्त रात्रि पूरी कर देता है। फिर भी उसको इस विचारमाला का अन्त नही पाता। इत्थ विचारयति कोशगते द्विरेफे, हा हन्त हन्त नलिनी गज उज्जहार। परन्तु वह जब इन विचारो में मग्न होता है तभी हाथी वहां पानी पीने के लिए पहुँच जाता है। वह थोडी देर इधरउधर मस्ती करता है और फिर सुन्दर सुहावने कमनों को सूड से चुन चुन कर मुह मे रखने लगता है । उस समय बेचारा भ्रमर भी हाथी के पेट में पहुँच कर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है -यह है विषय लुब्धता का परिणाम ।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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