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________________ (2), विषमता ढूढना यथोचित नही होगा-। 'स्मृति साधन' के पच्चीम पत्र वस्तुतः एक माला के मणियो की भांति है क्योकि हर पत्र पत्र स्मृति प्रक्रिया के किसी न किसी पक्ष पर समुचित रूप से प्रकाश डालता है तथा कई मौलिक तत्वो को उजागर करता है। 6-प्रत्येक पत्र मे प्रस्तुत किये गये प्रमुख तथ्यो का साररूप से विश्लेषण करना अनिवार्य है । प्रथम पत्र मे स्मृति को विकसित करने के लिये चार बातों का होना आवश्यक माना गया है सकल्प, अभ्यास, एकाग्रता तथा विविध विकल्पो के समाधान करने की तत्परता Readiness for differential cue selection, दूसरे पत्र मे स्मृति को पतजलि के चितन के अनुसार चित्त को प्रातरिक साधन की सज्ञा दी गई है एव चित्त को निम्नलिखित पाच. वृत्तियो मे सम्मिलित किया गया है : 1) प्रमाण, 2) विपर्यय, 3) विकल्प, 4) निद्रा, 5) स्मृति । स्मृति को मन के तीन प्रकार के व्यापारो-बुद्धि एव विचार प्रधान व्यापार, Cognitive Memorizling, भाव प्रधान व्यापार Emotional Memorizing एव इच्छा या अभिलाषा प्रधान व्यापार Motivated Memorizing से सम्बन्धित माना गया है । प्रतीति (Percept) के द्वारा संस्कार (Impression) जिसे शरीर क्रिया मनोवैज्ञानिक engrams कहते हैं, उसका निर्माण होता है और इनके पुनः सक्रियण Re-activations से स्मृति विकास होता है । तीसरे पत्र मे स्मरण के नैदानिक पक्षो; जिसकी चर्चा गीता मे भी की गई है, का उल्लेख करते हुए कहा है, 'स्मृतिभ्र शाद् बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात् प्रणश्यति ।' आधुनिक मनोवैज्ञानिक इसे कहते है कि 'Memory offers a basis of cognitive development चौथे पत्र मे स्मरण के प्रकार को अतिमद, मद, विभागीय मद, तीव्र एव तीव्रतम श्रेणियो मे विभाजित किया गया है । सार रूप से यह स्वीकार किया गया है कि शक्ति क्षमता Capacity की अभिव्यक्ति से विचलनशीलता है । स्मृति प्रसार के सप्रत्यय मे स्मृति सुधार की सभावना निहित है। पाचवे पत्र मे स्मरण का विश्लेषण करते हुए स्मृतिलोक के दो प्रमुख वैज्ञानिक कारको की चर्चा की गई है। उत्तर स्मृति भ्रश और पूर्व स्मृति भ्र श जिसे आधुनिक मनोवैज्ञानिक retro active तथा Proactive स्वीकार करते है । इसके अतिरिक्त विस्मरण के चित्त की पाच Interference के रूप में अवस्थामो मे एकाग्रता को मुख्य माना गया है। छठे पत्र मे एकाग्रता की आवश्यकतायें तथा विषय को केन्द्र स्थान मे रखकर उसका वर्ग, अवयव गुण, स्वानुभव से विचार करना,
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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