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________________ आमुख 1-शतावधानी विद्वानो ने जीवन दर्शन, नौंथो के श्रालेख मे स्मृति जैसी मौलिक एव अाधारभूत मनोवैज्ञानिक प्रत्रिया से सम्बन्धित अत्यन्त ही गूढ एव गहन चिंतन प्रस्तुत पुस्तक मे उपलब्ध है । जैन मुनियो ने अपनी दूरदर्शिता एवं ग्रहणशीलता को आधार बनाकर आज से सदियो पूर्व सीमित साधन एव वैज्ञानिक प्रगति के न होने पर भी बीज रूप से उच्च मानसिक क्रियानो के गत्यात्मक पक्षो को सहज रूप से उजागर करने की सराहनीय चेष्टा की है । प्रस्तुत पुस्तक के लेखक ने पच्चीस पत्रो की शृंखला मे सरस रूप से हर कडी में प्रत्येक पत्र द्वारा 'स्मरण कला' के आधार को अभिव्यक्त किया है । इस पुस्तक मे सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्मरण क्रिया एव उससे सम्बन्धित अनेक प्रक्रियाओ को एक कला के रूप मे स्वीकार किया है । कला की अभिव्यक्ति को जैसे सजाया व सवारा जा सकता है, ठीक उसी भांति स्मृति को भी विकसित किया जा सकता है। 2-पत्रो की शृंखला द्वारा व्यक्त - गहन विशारो के परम शुद्ध रूप से जिज्ञासु प्रणाली के परिप्रेक्ष्य मे प्रस्तुत करने का अनूठा एव अनुपम प्रयास है। भारतीय सदर्भ मे नचिकेता की ज्ञान-पिपासा को शात करने की यह विधि तथाकथित वैज्ञानिक विधियो से सर्वोपरि है। 3-मनोवैज्ञानिक सप्रत्ययो मे पाश्चात्य वैज्ञानिकता को समाविष्ट करने हेतु वस्तुपरक दृष्टिकोण का निर्माण कर हम स्मृति जैसी जटिल मानसिक प्रक्रियाओ को कहाँ अध्ययन कर उसकी सूक्ष्मता एव गूढता को जान पाये हैं यह अाज भी एक विचारणीय प्रश्न वना हुआ है। 4-पाश्चात्य जगत् के वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिको ने स्मृति सुधार पर किये गये अनेक शोधो के आधार पर केवल 'स्मृति प्रशिक्षण' की बात की है दूसरी ओर मौलिक रूप से स्मृति के सबध मे चिंतन कर विश्लेपणात्मक विचारो के आधार पर इस पुस्तक के सत प्रवर्तक ने 'स्मृति-साधना' की सोपान को लाकर खडा कर दिया है। 5-मेरे विचार मे इस कृतित्व का मूल्याकन पाश्चात्य जगत् के विचारको के मतो से तुलनात्मक विधि को अपनाकर उनमे समता और
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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