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________________ इस प्रकार ज्ञान एव आनन्द से परिपूर्ण, अनन्त गुणो के भण्डार परमात्मा अपने चारो स्वरूपो के द्वारा भव्य जीवो के लिये नित्य परम आलम्बन बनते हैं। निराकार परमात्म-दर्शन का अधिकारी कौन ? उपर्युक्त चार प्रकार से जो साधक साकार परमात्मा का दर्शन-मिलन प्राप्त कर सकता है, वही निरजन-निराकार परमात्मा के दर्शन का अधिकारी हो सकता है। प्रत्येक साधक के लिये साधना मे यही क्रम उपयोगी होता है-यह बताने के लिये श्री नमस्कार महामत्र मे भी सर्वप्रथम साकार स्वरूप श्री अरिहन्त परमात्मा का निर्देश है और तत्पश्चात् निरजन-निराकार श्री सिद्ध परमात्मा का निर्देश किया गया है । परमात्मा का तात्त्विक दर्शन एवं निश्चय रत्नत्रयी वर्तमान काल मे अपने भरतक्षेत्र मे भाव-तीर्थकर परमात्मा विद्यमान नही होते हुए भी उनके नाम आदि द्वारा उनके भाव-स्वरूप को अमुक अश मे अनुभव किया जा सकता है और यही प्रभु का 'तात्त्विक दर्शन' एव मिलन है। शास्त्रो मे प्रभु के तात्त्विक दर्शन को 'सम्यग् दर्शन' एव प्रभु के तात्त्विक मिलन को 'सम्यक् चारित्र' कहते हैं और उन अद्भुत गुणो को प्राप्त करने की कला को 'सम्यग् ज्ञान' कहते हैं। तात्त्विक रीति से (निश्चय नय से) परमात्म-स्वरूप का दर्शन प्रात्मस्वरूप के दर्शन से ही होता है और परमात्म-स्वरूप का यथार्थ ज्ञान आत्मस्वरूप के यथार्थ ज्ञान के द्वारा ही होता है, तथा परमात्म-स्वरूप मे रमणतारुप परमात्म-मिलन भी आत्म-स्वरूप मे रमण करने से ही होता है। इस प्रकार आत्मा एव परमात्मा के स्वरूप का अभेद है । मिले मन भीतर भगवान
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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