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________________ परोपकार-व्यसनी श्री अरिहन्त परमात्मा के किसी भी निक्षेपा को आत्मसात् करना उनके असीम उपकारो को यथार्थ नमस्कार है। ऐसी एकान्त लाभदायक भक्ति मे अपनी समस्त शक्ति लगाने मे ही मानव-भव की सार्थकता है। श्री अरिहन्त परमात्मा के चार प्रकार (१) नाम जिन, (२) स्थापना जिन (३) द्रव्य जिन और (४) भाव जिन ये श्री अरिहन्त परमात्मा के चार प्रकार हैं । (१) नाम जिन :-श्री जिनेश्वर परमात्मा का नाम । जिस प्रकार श्री वर्द्धमान स्वामी आदि विशेष नाम और अहं, अरिहत आदि सामान्य नाम । (२) स्थापना जिन -श्री अरिहन्त परमात्मा की मूर्ति, चित्र तथा बुद्धिस्थ आकार तथा 'अरिहत' ऐसे अक्षर । (३) द्रव्य जिन -श्री अरिहन्त परमात्मा के जीव, जिस प्रकार श्रेणिक महाराजा अथवा श्री अरिहन्त परमात्मा बनकर सिद्धि प्राप्त सिद्ध भगवत। (४) भाव जिन -भाव जिन दो प्रकार से है (१) पागम से भाव जिन, (२) नो पागम से भाव जिन । (१) पागम से भाव जिन . -समवसरण स्थित श्री अरिहत परमात्मा के ध्यान मे उपयुक्त साधक । (२) नो आगम से भाव जिन . -समवसरण स्थित श्री अरिहन्त परमात्मा ।* चउहजिणा नाम-ठवण-दव्वभावजिणभेएण ॥५०॥ नामजिणा जिण नामा, ठवण जिणा पुण जिणिदपडिमाओ । दव्वजिणा जिणजीवा, भावजिणा समवसरणत्था ।। ५१ ॥ -चैत्यवन्दन भाष्य . गाथा ५१ - २८ मिले मन भीतर भगवान
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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