SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उन गुणो को पीछे के दो छन्दो में वर्णित श्रद्धेय-ध्येय आदि के कारण के रूप मे वताकर प्रभु को अकल्पनीय, अचिन्त्य-शक्ति की महिमा प्रदर्शित की गई है । वह निम्नलिखित है : (१) जो परमात्मा है, अर्थात् जो समस्त ससारी जीवात्मानो की । अपेक्षा श्रेष्ठ है, क्योकि उन्होंने अपना शुद्धात्मस्वरूप स्वय के बल से पूर्णत प्रकट किया है। जो केवल ज्ञान की ज्योति स्वरूप है और परमपद मे स्थित पुण्यशाली परमेष्ठि भगवतो मे प्रधान हैं, प्रथम हैं, वे ही श्री वीतराग परमात्मा श्रद्ध य हैं, ध्यान करने योग्य हैं ।। श्रद्धा श्रेष्ठतम तत्त्व के प्रति ही की जा सकती है, उसे श्रेष्ठतम तत्त्व मे ही प्रतिष्ठित किया जा सकता है । ‘परमात्मा' यह शब्द ही उनके श्रेष्ठतम आत्म-तत्त्व की प्रतीति कराता है। इस प्रकार का श्रेष्ठतम प्रात्म-तत्त्व श्रेष्ठ ज्योति-स्वरूप है और विश्व कल्याणकारी पच परमेष्ठि भगवतो मे भी श्रेष्ठ है, प्रथम है, इसलिये ही वह ध्यान करने योग्य है जो ध्याता को ध्येय-स्वरूप बना सकता है, अर्थात् ध्याता ध्यान के माध्यम से ध्येयाकार को प्राप्त कर सकता है । (२) जो अज्ञान रूपी अन्धकार से परे सूर्य सदृश केवलज्ञानमय ज्योति प्रकाशित करने वाले हैं, ऐसे परमात्मा की शरण मैं स्वीकार करता हूँ। उसका कारण यह है कि अज्ञान रूपी अधकार मे घुटती आत्मा को सच्चे मार्ग पर चलने के लिये ज्ञान रूपी प्रकाश का पाश्रय अवश्य लेना ही पडता है । जो परमात्मा पूर्ण ज्ञान ज्योति स्वरूप हैं उनका प्राश्रय लेने वाले व्यक्ति का अज्ञान रूपी अधकार अवश्य नष्ट होता है और उसका जीवन स्वरूप-बोध प्राप्त करके ज्योतिर्मय बन जाता है, इसलिये ही वे शरण लेने योग्य हैं। शीत से ठिठुरता मनुष्य ताप का आश्रय लेता है जिससे उसकी शीत उड जाती है । इस बात में कोई व्यक्ति शका नहीं करता, उसी प्रकार से केवलज्ञानमय श्री अरिहन्त परमात्मा की शरण अगीकार करने वाला पुण्यात्मा मिले मन भीतर भगवान
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy