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________________ स्मरण कला १४७ उदर पर किसी प्रकार का वजन न हो तो मन की स्फति प्रशस्त पौर प्रबल रहती है । इस कारण बहुत से अवैधानकार महान् प्रयोग के दिन, बने वहां तक, उपवास करते हैं और उपवास न बन सके तो दूध या फलों का स्वल्प आहार ग्रहण करते हैं । इसके सिवाय कोई खास विधि नही है। प्रश्न अवधानकार अपने देश में ही हैं या दूसरे देशो मे भी है ? उत्तर-अन्य देशों मे भी अदभुत स्मरण-शक्ति वाले पुरुष समय-समय पर उत्पन्न होते हैं। परन्तु अवधान-क्रिया का पद्धतियुक्त विकास तो भारतवर्ष मे ही हुआ मालम पडता है, उसमे भी जिन जातियो में मासाहार या मदिरापान बिल्कुल वर्जित होता है, उनमे ही इस प्रकार के व्यक्ति विशेष पैदा होते है। प्रश्न-अवधान कला के विषय मे आपने कोई खास ग्रन्थ देखा है ? उत्तर-नही, इस कला का कोई खास ग्रन्थ देखने मे नही प्राया, और ऐसा ग्रन्थ किसी ने लिखा है यह आज तक तो जानने मे नही पाया । किन्तु यह कला गुरु द्वारा उत्तरोत्तर शिष्यो को सिखाई जाती रही है, यह प्रतीत अवश्य होता है । विदेशो मे स्मरण शक्ति और उसके विकास के विषय मे कुछेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं पर अब तक उनमे चाहिये जितनी गहराई नहीं आई है। ' प्रश्न-नव और छह अक का वर्ग किस प्रकार होता है। उत्तर-इसमे भाव बन्धन का आधार लेना अपेक्षित है। प्रश्न-ससार की पृथक्-पृथक् भाषाएं किस पद्धति से याद - रखी जाती हैं। उत्तर-भाषाएं कुल दो प्रकार की हैं । एक तो परिचित अर्थात् जिसे हम जानते है वह और दूसरी अपरिचित अर्थात् जिसे हम नही जानते हैं 'वह । नही जानते है वे समस्त भाषाएँ अपने तो एक समान ही है. फिर वह चाहे देश की हो और चाहे किसी प्रकार से- बोली जाती हो। इन भाषाओ को सुनते समय अत्यन्त एकाग्रता रखनी अपेक्षित है जिससे उनका उच्चारण बराबर --किया जा सके। इसके लिए श्रवणेन्द्रिय का भी परिपूर्ण कार्यक्षेत्र होना जरूरी है । इस तरह भाषा को ग्रहण करने के बाद उन अपरिचित शब्दो का परिचित भाषा के साथ, कोई न कोई कहा। इन भास उनका परिपूर्ण
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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