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________________ पत्रं चौबीसवाँ प्रिय बन्धु ! तुम्हारा पत्र मिला, तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर निम्न प्रकार से है । "प्रश्न-एक साथ कितनी वस्तुप्रो पर ध्यान दिया सकता है ? उत्तर-ऐक समय में एक ही वस्तु पर ध्यान दिया जा सकेंता है, परन्तु मन यदि बहुत ही कल्पनाशील हो तो अलग-अलग विषयो को एक के बाद एक खूब शीघ्रता से ग्रहण किया जा सकता है। इसलिए वह एक साथ अनेक वस्तुप्रो पर ध्यान देने जैसा लगता है, परन्तु यथार्य मे एक साथ दो वस्तु पर ध्यान देना , सम्भव नही है। ' प्रश्न-अवधान-प्रयोग मे योग-शक्ति का उपयोग होता हैक्या यह सत्य है ? उत्तर-योग शक्ति क्या है ? यह पहले समझ लेना आवश्यक है। योग, यह किसी भी प्रकार का चमत्कार अथवा प्रकृति के नियम के बाहर की वस्तु नही है, पर एक प्रकार का अभ्यास ही है । फिर वह चाहे शरीर और उसकी नसो के सम्बन्ध मे हो, मन और उसकी वृत्तियो के सम्बन्ध मे हो या परमात्मा की शक्ति के प्रकाश को प्राप्त करने के सम्बन्ध मे हो। इस अभ्यास द्वारा प्राप्त होने वाला शक्ति का खासकर एकाग्रता का उपयोग इस प्रयोग मे किया जाता है। प्रश्न-अवधान-प्रयोग सहजशक्ति से होता है या शैक्षणिक शक्ति से । उत्तर-कुछेक व्यक्ति इन प्रयोगों को सहज-शक्ति से कर सकते है, जबकि बाकी के शिक्षण-शक्ति द्वारा करते है । सहज , शक्ति वाले व्यक्ति विरल और स्वल्प होते है, क्योंकि उसमे अति उच्च कक्षा का मानसिक विकास अपेक्षित है। प्रश्न-अवधान-प्रयोगो मे कोई खास विधि अपनानी पडती है, यह सत्य है न ? उत्तर-अवधान-प्रयोग स्वय ही एक विधि युक्त प्रक्रिया है । उसमे दूसरे अनुष्ठान की अपेक्षा नही। परन्तु इन प्रयोगो की क्रिया के पूर्व शरीर का मल दूर हो जाए यह जरूर आवश्यक है तथा
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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