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________________ २४ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी टहनियों के पत्तों में छुपी बैठी हैं कि अचानक पश्चिम की ओर से एक काली २ घटा आती हुई दिखलाई दी। बात की बात में बादलों ने सूर्य को ढक लिया और सम्पूर्ण आकाश में मेघ छा गए। पहिले रिमझिम रिमझिम बृन्दें पड़ी और शीघ्र ही मूसलाधार वर्षा पड़ने लगी। भयंकर उष्णता के बाद इस आकस्मिक वषो से समस्त लोक प्रफुल्लित हो उठा । वृद्ध, युवा, वालक, वालिकाएं, युवतियां; वृद्धाएं, पशु, पक्षी तथा वृक्ष सभी आनन्द में विभोर होकर नृत्य करने लगे। चिरकाल के बाद तप्त शरीर का दाह शान्त करने वाला जल बरसता देखकर छोटे छोटे बालक नग्न होकर तुरन्त वर्षा में निकल गए और इधर उधर कूदते हुए भाग २ कर जल में कल्लोल करने तथा हर्प के गीत गाने लगे। अब तो सारी वायु ठण्डी हो गई और शीतल तथा मन्द पवन चलने लगी । अढ़ाई तीन घंटे तक भारी वर्षा होने के उपरान्त वर्षा का वेग कम हुआ। इस समय आकाश में अस्ताचल की ओर जाते हुए सूर्य का कुछ भाग दिखलाई दिया । उधर आकाश में दूसरी ओर सात रंग का इन्द्र धनुष दिखलाई देने लगा। सूर्य की किरणों के तिरछे प्रकाश से आकाश के बादल भी अनेक रंगों में रंगे हुए दिखलाई देने लगे। इस दृश्य को देखकर नर नारी और भी आनन्दित हुए। अनेक स्थानों पर लोग अपने २ प्रेमियों तथा बच्चों को बुला २ कर इन्द्र धनुष को दिखला रहे हैं। मोर हर्ष में विभोर होकर अपने केका रव से आकाश को गुजारित करते हुए पंख ऊपर उठा कर नाचते हुए अपनी अपूर्व कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे समय में एक महिला अपने विशाल भवन के एक कमरे में एक आसन पर बैठी हुई आत्मचिन्तवन तथा धार्मिक विचारों में लीन है। वह अपने विचारों मे इतनी तन्मय है कि उसके हृदय पटल पर इस प्राकृतिक परिवर्तन का
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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