SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुणिगणगणनारम्भे न पतति कठिनी सुसम्भ्रमाद्यस्य । तस्याम्बा यदि सुतिनी वद वन्ध्या कीदृशी नाम ॥ - गुणियों की गिमती प्रारम्भ करने पर जिसके नाम पर अचानक ही गिनने वाली अंगुली न जा पड़े यदि उसकी माता को पुत्रवती कहा जावेगा तो फिर वनम्मा की क्या परिभाषा की जावेगी? तात्पर्य यह है कि जिस व्यक्ति की गणना सभा में गुणियों में न की जावे, उसकी माता को वनभ्या ही समझना चाहिये । पुत्रवती माता बही है, जिसके पुत्र की गणना सब कहीं गुणियों में की नावे । ज्येष्ठ मास समाप्त होने वाला है, किन्तु घर्षा आने के लक्षण अब भी दिखलाई नहीं देते। मध्यान्ह होने के कारण सूर्यदेव अपनी सहस्रों किरणों से संसार को तपा रहे हैं। बाहिर निकलना कठिन हो रहा है। कोई तहखानों में वो कोई अपनी अपनी दुकानों के अन्दरूनी भाग में ताप से दुबके बेठे हुए हैं। नगर के बाहिर जोहड़ों का जल. इतना उष्ण हो गया है कि भैंसों के लिये भी उसमें बैठना असम्भव हो गया है। गौवें तथा भैसें धूप की तीव्रता के कारण चरना बन्द करके सायेदार वृक्षों के नीचे खड़ी २ जुगाली कर रही हैं। चिड़ियें भी भीषण ताप के कारण चुग्गे के लिये बाहिर न जाकर वृक्षों के साए में
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy