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________________ जन्म , लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ा। यद्यपि उसके शरीर पर कोई बहुमूल्य वस्त्राभरण नहीं है, किन्तु उसके शरीर की अपूर्व शोभा तथा मुख पर छाई हुई शान्त रस की आभा उसे देखने वाले के मन को मुग्ध कर देती है। वह युवती अपनी उस मुद्रा में बैठी थी कि एक युवक उसके सामने श्राकर खड़ा हो गया। उसके वस्त्र बहुमूल्य थे। सौंदर्य उसके अंग २ से प्रकट हो रहा था, जो उसके प्रतिष्ठित वंश में उत्पन्न होने की साक्षी दे रहा था। युवक को उस महिला को इस प्रकार 'ध्यानमग्न देखकर अत्यधिक आश्चर्य हुआ। महिला को युवक के आने का लेशमात्र भी ध्यान नहीं हुआ, यह देखकर तो युवक और भी अधिक श्राश्चर्य में पड़ गया। अन्त में उससे न रहा गया और वह उस महिला से बोला। "देवि ! यह क्या हो रहा है ?" युवक के यह शब्द सुनते ही महिला ने उसकी ओर को देखा। वह उसे देखते ही खिल उठी और मुस्करा कर बोली ... "पतिदेव ! कुछ भी तो नहीं।" ___"कुछ कैसे नही ? मैं कई दिन से बराबर देख रहा हूँ कि न तो तुमको वस्त्राभूपणों से प्रेम है और न ही खानपान से। आश्चर्य तो यह है कि ऐसे सुहावने समय में भी तुम' एकांत में बैठकर अपने विचारों में इतनी तल्लीन थीं कि तुमको मेरे आकर खड़ा हो जाने तक का पता न चला। क्या तुम्हारा किसी से झगड़ा हुआ है ?" ___ "नाथ ! न तो मेरा किसी से झगड़ा हुआ हैं, न ही अन्य कोई दुःखद घटना ही घटी है। किन्तु नाथ ! आपको स्मरण होगा कि मैंने आपके श्री चरणारविंद में अपना एक स्वप्न
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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