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________________ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी डरते अमृतसर आ तो गया, किन्तु यहां आकर मैंने पूज्य श्री सोहन लाल जी महाराज में जितनी नम्रता देखी वह मेरे जीवन में एक नया अनुभव है। वास्तव में बड़े आदमी प्रभुता पाकर और भी अधिक नम्र हो जाते हैं। प्रधानाचार्य का पद पाकर तो मैं उनके हृदय को मक्खन से भी अधिक कोमल पाता हूं। वास्तव में पंजाब और विशेषकर अमृतसर के चतुर्विध संघ का यह परम सौभाग्य है कि उसको पृज्य श्री जैसा धार्मिक नेता मिला। ___"उन्होंने जो मेरा अभूतपूर्व स्वागत किया है यह भी उनके हृदय की कोमलता का एक प्रमाण है। वास्तव में मेरा ऐसा भारी स्वागत आज तक कहीं भी नहीं हुआ। प्रधानाचार्य श्री सोहन लाल जी महाराज ने मेरे साथ जो भव्य व्यवहार किया है उसके लिये मैं कुछ भी बदला नहीं दे सकता। आप वत्तीसों सूत्रों के विद्वान् तो है ही, लौकिक तथा जैन ज्योतिष के भी अभूतपूर्व विद्वान् हैं। कथानुयोग, गणितानुयोग, चरणानुयोग तथा द्रव्यातुयोग-शास्त्रों के इन चारों अंगों के भी आप उद्भट विद्वान् हैं । मेरा सौभाग्य है कि मुझे आपके दर्शन का अवसर मिला।' श्रावक वर्ग के साथ साथ जनता भी पूज्य श्री अमोलक ऋषि जी महाराज के दर्शन करके बहुत प्रभावित हुई । उसने आपले अत्यधिक प्रेमपूर्वक अमृतसर मे चातुमास करने की विनती की । आपकी इच्छा भी वहां चातुर्मास करने की थी, क्योंकि आप प्रधानाचार्य महाराज के संग का लाभ उठाना चाहते थे, किन्तु आपको महाराष्ट्र में अपनी सम्प्रदाय का एक सम्मेलन करना था, अतः आप इच्छा न होते हुए भी अमृतसर से महाराष्ट्र की ओर विहार कर गए।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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