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________________ महाप्रयाण ३६३ __ इस समय अमृतसर की जनता ने शतावधानी मुनि रत्न जी महाराज तथा युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज की सेवा में भी चातुर्मास की आग्रहपूर्ण विनती की। अतएव आप दोनों ने अपना संवत् १६६२ का चातुर्मास पूज्य श्री के चरणों में अमत. सर में करना स्वीकार करके वहां से बिहार कर दिया। शतावधानी महाराज को प्रधानाचार्य महाराज से बड़ी बड़ी आशाएं थीं। वह उनके संरक्षण में एक ऐसी शिक्षण संस्था की स्थापना करना चाहते थे, जिसमें साधुओं को सभी विषयों की शिक्षा देकर उन्हें उच्चकोटि का विद्वान् बनाया जाये । इस सम्बन्ध मे अमृतसर के भाइयों ने उनको पर्याप्त सहयोग का आश्वासन भी दिया था। अमृतसर की विनती को स्वीकार करने के पश्चात् शतावधानी जी तथा युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज वहां से विहार करके पसरूर तथा जम्मू मे धर्म प्रचार करते हुए स्यालकोट आए। स्यालकोट में आपके कारण बड़ी भारी धर्म प्रभावना इधर संवत् १६६२ विक्रमी मे पूज्य महाराज का स्वास्थ्य अमृतसर में कुछ अधिक खराब हो गया। इससे अमृतसर के श्रावक घबरा गए और उन्होंने युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज को पूज्य महाराज के चरणों मे अविलम्ब पधारने के लिये अमृतसर से स्यालकोट टेलीफोन कि ।। पूज्य महाराज की तबियत की साज संभाल करने के लिये श्रावक लोग उनके पास एकत्रित हो गए। तब एक श्रावक ने कहा "पूज्य महाराज ! अब आपकी तबियत कैसी है ? हमने युवाचार्य महाराज को बुलाने के लिये स्यालकोट टेलीफोन कर दिया है।"
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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