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________________ महाप्रयाण ३६१ महाराज का चातुर्मास दिल्ली में हुआ। इस चातुर्मास के बाद शतावधानी मुनि रत्नचन्द जी महाराज को युवाचार्य श्री काशी राम जी महाराज का साथ मिल गया और वह उनके साथ विहार करते हुए संवत् १६६१ में ही अमृतसर गए। जब यह दोनों संत अमृतसर जाने के लिये जंडियाला गुरु पहुंचे तो वहां उनको पूज्य अमोलक-ऋषि महाराज भी मिल गए। अब यह तीनों जडियाला गुरु से विहार करके अमृतसर पहुँचे।। ___अमृतसर में उनका बड़ा भारी स्वागत किया गया। स्वयं पूज्य श्री सोहन लाल जी महाराज ने अमोलक-ऋषि महाराज का अभूतपूर्व स्वागत किया। अमोलक-ऋषि जी बड़े भारी विद्वान् थे । उन्होंने बत्तीसों सूत्रों का हिन्दी भाषा में अनुवाद किया था। इसके अतिरिक्त उन्होंने अन्य भी अनेक ग्रन्थों की रचना की थी। पूज्य श्री के स्वागत से वह अत्यधिक प्रसन्न हुए। अमृतसर के स्थानक मे उनके स्वागत मे जो सभा हुई थी उसमे उन्होंने अपने हृदय के उद्गार इस प्रकार प्रकट किए ___"पूज्य श्री सोहन लाल जी महाराज के विषय में लोगों ने मुझे भारी धोखा दिया। उन्होंने मेरे मन में यह वहम डाल दिया था कि उनको अपनी विद्या का भारी अभिमान है और वह नए विद्वान् तथा तपस्वी को प्रश्नोत्तर करके अपमानित किया करते हैं । इस बात को सुनकर यहां आने से मेरी तबियत भी हट गई थी। किन्तु युवाचार्य काशीराम जी महाराज के शील, स्वभाव आदि को देख कर मेरे मन मे उनके गुरु के दर्शन करने की बड़ी भारी अभिलाषा थी। फिर उनका आग्रह भी मुझे अमृतसर आने की प्रेरणा कर रहा था। पंजाब और विशेषकर अमृतसर के भाइयों के डेपूटेशन ने तो मुझे यहां आने को विवश कर दिया। अस्तु मैं साहस करके मन में डरते
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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