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________________ जन्म स्थान ।। प्रारम्भ होगया। यद्यपि अँग्रेजों ने भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन का अत्यन्त निर्दयता से दमन किया, किन्तु वह यह समझ गए कि उनको एक न एक दिन भारत को पूर्णतया खाली करके जोना ही होगा। अँग्रेज यह भी समझते थे कि भारत का राष्ट्रवादी आन्दोलन प्रायः हिन्दुओं का चलाया हुआ है। अतएव उन्होंने मन में विचार किया कि देश में हिन्दू-मुस्लिम विद्वप को भड़का कर भारत में अधिक दिनों तक टिका जा सकता है। उन्होंने यह भी-अपने मन ही मने निश्चय कर लिया कि भारत-के जितने ही अधिक से अधिक भाग किये जावेगे, उतनी ही हिन्दू राष्ट्रीयता निर्बल ..बन जावेगी और अग्रेजों के भारत छोड़ देने पर भी भारत से कटे हुए प्रदेश उनको श्राश्रय देते रहेंगे। . - अंग्रेजों के समय भारतीय साम्राज्य पश्चिम, में अरब समुद्र के पार- अदन तक फैला हुआ था। अरब सागर के लक्ष द्वीप-(Lacadiv) तथा माल.द्वीप (Maldiv) भी भारतीय साम्राज्य के ही अंग थे। भारत के दक्षिण में भारतीय महासागर में लंका भी भारत का अंग था। बंगाल की खाड़ी में ऐडमन तथा निकोबर द्वीप समूह भी भारत के अंग थे। पूर्व में भारतीय सीमा में ब्रह्मदेश सम्मिलित था। भारतीय सीमा ब्रह्मदेश के पूर्व में सिंगापुर के प्रसिद्ध नौसेनिक अडु-तक-मानी जाती थी। । अंग्रेजों ने प्रथम लका को भारत से पृथक करके, फिरें ब्रह्मदेश को भी भारत से पृथक कर दिया। फिर उन्होंने अदन, लक्षद्वीप तथा मालद्वीप को भी भारत से अलग करके भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का भीषणता से दमन करना आरम्भ किया। किन्तु भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का जितना ही अधिक दमन किया जाता था वह उतना ही अधिक प्रचंड रूप
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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