SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरु सेवा गुरु ठाड़े गोविन्द खड़े, का के लागों पाय । बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविन्द दिये मिलाय ॥ मेरे सामने अाज अचानक मेरे गुरु और भगवान गोविन्द दोनों दर्शन देने को श्रा खड़े हुए हैं। मेरे मन में यह द्विविधा है कि दोनों में से प्रथम किमके चरण पकडं । किन्तु मैं तो अपने गुरु की बलिहारी हूं और इसलिए उनके ही चरण मैं पहिले पकड़े गा, क्योंकि गोविन्द को मुझसे उन्होंने ही मिलाया है । ___वास्तव में गुरु के अहसान का बदला अनेक जन्म लेकर भी नहीं चुकाया जा सकता । जो काम अनेक वर्षों के तपश्चरण से सिद्ध नहीं हो सकते वह गुरु कृपा से अल्प समय में ही सिद्ध हो जाते है। श्री मुनि सोहनलाल जी का यह विशेष सौभाग्य था कि उनको दीक्षा लेने के तुरन्त बाद ही गुरु सेवा का अपूर्व अवसर प्राप्त हो गया और वह भी लगभग तीन वर्ष तक। आपकी दीक्षा के पश्चात् आपके दीक्षा गुरु मुनि धर्मचन्द जी महाराज का स्वास्थ्य पर्याप्त बिगड़ गया। उनके नेत्रों में विशेष कष्ट बढ़ गया । अतएव मुनि सोहनलाल जी ने मन, वचन तथा कर्म की तल्लीनता से गुरु की सेवा की। आप
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy