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________________ दीक्षा ग्रहण २१३ पर आने के लिए साधन करते हुए दीक्षा लेने की अपनी पात्रता सिद्ध कर चुके हैं। किन्तु जैन शासन का यह नियम है कि घरवालों की अनुमति के बिना हम तुमको दीक्षा नहीं दे सकते। तुमको तो सोहनलाल, दीक्षा ले कर उच्चकोटि का साधु वनना ही है। तुम लोग हमारे कहने से एक बार प्रयत्न और करो। अबकी बार आने पर हम तुमको दीक्षा अवश्य दे देंगे।" पूज्य अमरसिंह जी महाराज का यह आदेश पाकर यह चारों व्यक्ति फिर अपने २ घर गए। उन्होंने जाकर अपने घर वालों को कह दिया कि यदि उन्होंने उनको तुरन्त दीक्षा लेने की अनुमति नहीं दी तो वह घर में ही अन्न पानी का त्याग कर संथारा करेंगे। इस पर घर वालों ने इन लोगों को मौन रह कर अर्द्ध स्वीकृति दे दो। इस प्रकार अनेक संघर्षों के पश्चात् मार्गशीर्ष बदि ३ संवत् १९३३ को श्री सोहनलाल जी बैरागी ने अपने तीन मित्रों सहित दीक्षा ग्रहण की। पूज्य श्री अमरसिंह जी महाराज ने सोहनलाल तथा शिवदयाल को श्री धर्मचन्द जी महाराज से और दूल्होराय तथा गणपतराय को श्री मोतीराम जी महाराज से दीक्षा दिलवाई। दीक्षा महोत्सव अत्यन्त धूम धाम से मनाया गया।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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