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________________ आदर्श करुणा १६५ ____ मामी जी-बहिन! यह तो तुम मुझे केवल भरमाने के लिए ही कह रही हो। बहिन तुम यह विश्वास रक्खो कि मैं तुम्हारा भेद किसी और के सामने नहीं खोल सकती। खत्रानी-बहिन ! एक न एक दिन तो उस भेद को सारा संसार जानेगा ही, किन्तु समय से पूर्व कहना अच्छा नहीं लगता । फिर भी तुम मुझे अपनी बहिन के समान समझती हो इस लिये तुमको मैं यह बतला देती हूं कि दिवाली बाद हमारे घर कुर्की आने वाली है। मैं भगवान से यही प्रार्थना करती रहती हूं कि भगवान् वह दिन आने से पूर्व ही मुझे मौत दे दे, जिससे मुझे अपने नेत्रों से अपने परिवार का अपमान न देखना पड़े। मामी-बहिन ! कुर्की कौन लेकर आवेगा? क्या उनको समझाने से कुर्की को कुछ दिन के लिये टाला नहीं जा सकता ? खत्रानी-बहिन ! आप तो तोते शाह को जानती हो । वह ऋण वसूल करने में बड़ा कड़ा आदमी है। छूट या मोहलत के नाम से तो उसे भारी चिढ़ है। __मामी जी-वहिन ! क्या जाने, भगवान् उसे सुबुद्धि दे दे और वह तुमको कुछ मोहलत दे दे। दुर्गादास की स्त्री के चले जाने पर मामी जी ने सोहनलाल जी को तोते शाह का नाम बतला दिया। सोहनलाल जी ने तोते शाह के पास जाकर उसने पूछा __सोहनलाल-शाह जी! आपको दुर्गादास से कितना रुपया लेना है। ___ तोते शाह -१५००) मूल, २०००) ब्याज तथा ५००) खर्चा कुल चार सहस्त्र रुपया लेना है। उस रकम की में ने डिग्री ले ली है।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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