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________________ १६४ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी सामान अपने अल्पवयस्क पुत्र की धरोहर के रूप में दिया था। उनका वह वालक अभी नौ वर्ष का है। यदि मैं अभी से उसको यह सामान सौप दू तो वह उसकी रक्षा न कर सकेगा। इस लिए इस धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए इसे आपके पास रक्खा है।" उसके यह कहने के बाद उससे दुबारा आग्रह करने का मुझे साहस न हुआ। ___ सोहनलाल-मामी जी ! धन्य है दुर्गादास को, जो ऐसी पीड़ित अवस्था मे भी दूसरे की धरोहर को सुरक्षित रखने का उसे इतना अधिक ध्यान है। उसकी तो किसी प्रकार सहायता करनी ही चाहिये। मामी जी- बेटा। हमारे परिवार मे तुम ही बुद्धिनिधान हो । तुम कोई ऐसा तरीका निकालो कि दुर्गादास को पता भी न चले और उसका ऋण इस प्रकार चुक जावे कि उसके आत्मसम्मान को ठेस भी न लगे। __सोहनलाल-मामी जी! आप मुझे केवल यह बतला दे कि उस पर कुर्की लाने वाले कौन है। इतना पता लग जाने पर शेष प्रवन्ध मैं स्वयं कर लूगा। ___ मामी जी--बहुत अच्छा ! मैं दुर्गादास की पत्नी से पूछ कर तुमको बतला दूगी। कुछ देर के बाद उन्होंने दुर्गादास की पत्नी को अपने घर बुलवाया। कुछ देर तक इधर उधर की बातें करने पर उन्होंने उससे कहा मामी जी-बहिन ! क्या कारण है कि तुम दिन प्रतिदिन अत्यधिक निर्बल होती जाती हो ? जान पड़ता है कि किसी आन्तरिक चिन्ता के कारण तुम मन ही मन घुली जा रही हो। खत्रानी बहिन ! ऐसी कोई वात नहीं है।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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