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________________ १६६ प्रधानाचार्य श्री मोहनलाल जी मोहनलाल- यदि कोई इस रुपय को भर दे तो आप उससे तो नहीं मांगोग? तोते शाह-फिर मुझे उससं मांगने की क्या आवश्यकता है यह बात सुन कर सोहनलाल जी ने उसको चार सहर रुपये दे कर उससे डिग्री की रसीद लिखवा कर डिग्री वाला काग़ज भी ले लिया और उससे कहा सोहनलाल-सेठ जी! अब आप इतना काम करें कि दुगोदास को बुला कर उससे कहे कि "तुम धर्मात्मा हो। इस लिये मैं तुमको सहूलियत देता हूँ कि तुम प्रति वर्ष चार सौ रुपये दिया करो । इस प्रकार तुम्हारा सम्मान भी बना रहेगा और हमारा रुपया भी मिल जावेगा।" जो जो रुपया आपको उनसे मिलता रहे वह आप हमारी दुकान पर भेज दिया करे । किन्तु यह ध्यान रहे कि इस बात का पता दुर्गादास या और किसी को भी न लगने पावे। तोते शाह-किसी और से कहने की मुझे क्या पडी है। इससे तो मेरी ही इजत बढ़ेगी। सोहनलाल जी के चले जाने पर तोते शाह न दुर्गादाम को बुला कर उससे कहा . तोते शाह-दुर्गादास जी ! आप विश्वासपात्र आदमी है । मैं चाहता हूं कि आपका सम्मान वना रहे। मेरा तथा आपका लेनदेन काफी समय से है। इसलिये मैं आपको इतनी सहूलियत देता हूँ कि आप मेरा रुपया चार सौ रुपया वार्षिक किस्त के हिसाब से दस वर्ष में चुका दे। इस प्रकार मेरा रुपया वसूल हो जावेगा और आपका सम्मान भी बना रहेगा।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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