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________________ सगाई जहां चारों हो तो उसका क्या पूछना। तथापि जहां विवेक होता है वहाँ यौवन, वैभव, रूप तथा अधिकार भी श्रात्मा का अनिष्ट नहीं कर सकते। सोहनलाल जी में यह सभी गुण थे। अतएव उनकी चतुर्मुखी प्रशसा सुन कर अनेक कन्याएं भगवान से प्रार्थना किया करती थी कि __ "हे भगवान् ! यदि हमारे पुण्य का उदय है तो हमको सोहनलाल जी के जैसा सर्वगुणसम्पन्न पति मिले। ___अनेक कन्याओं के माता पिताओं की भी यही भावना रहती थी कि हमारी कन्या को सोहनलाल जैसा वर मिले। उनके गुणों पर प्रत्येक सज्जन मुग्ध था। उनका सुन्दर रूप, विकसित कमल पुष्प के समान नेत्र, हंसता हुआ मुख कमल, विशाल वक्षस्थल, लम्बी भुजाएं, पूर्ण ब्रह्मचर्य का अद्भुत तेज, बोलने में चतुरता, व्यापार में दक्षता, गुरुजनों में प्रिय भक्ति, धर्म में दृढ़ता, छोटों से प्रेम व्यवहार, दीनों के लिये दयालुता तथा कामभीरुता आदि गुण प्रत्येक दर्शक के मन को मोह लेते थे। माता पिता, मामा मामी तथा बड़े भाई शिवदयाल सभी आपके लोकोत्तर असाधारण गुणों को देखकर प्रसन्न होते रहते थे। अनेक कन्याओं के पिता लाला मथुरादास जी तथा लाला गंडामल के पास प्रायः आते रहते थे कि वह सोहनलाल जी के साथ उनकी कन्या का संबन्ध होना स्वीकार करलें। एक दिन लाला मथुरादास जी ने सोहनलाल जी की २४ वर्ष की परिपक्व आयु समझ कर उनसे विवाह के सम्बन्ध में उनकी सम्मति पूछी । उस समय उनमें निम्नलिखित वार्तालाप हुआ मथुरादास जी-बेटा! पिता के मन में संतान के सुख दुःख की चिंता सदा बनी रहती है । तुम स्वयं बुद्धिमान हो
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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