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________________ सती पार्वती से वार्तालाप १६७ - "सजनों! यदि आप अविनाशी सुख चाहते हो तो नाशवान् पदार्थों से विरक्त होकर अविनाशी आत्मिक गुणों से सम्बन्ध स्थापित करो।" ___महासती पार्वती के इस प्रकार के सारगर्भित वचनों को सुन कर भव्य जीवों को अपार सुख हुआ। अब तो सारी जनता वैराग्य आनन्द के शान्त रस में बहती हुई महासती की प्रशंसा करने लगी। श्री सोहनलाल जी ने व्याख्यान के उपरांत महासती जी की प्रशंसा करते हुए उनसे कहा "महासती जी! आपको धन्य है जो आप जनता को सन्मार्ग बतलाती हुई स्वपर कल्याण करने में लीन हैं । महासती जी ! ससार की दशा वास्तव में ऐसी ही है। यह जीव मोहग्रस्त हो कर नाशवान् पदार्थों को ही सच्चे सुख की प्राप्ति का साधन समझता है और उन्हीं को प्राप्त करने का रात दिन प्रयत्न करता रहता है। किन्तु उसे मिलता क्या है ? सुख के स्थान पर उसे केवल दुःख ही मिलता है। रोग से रूप नष्ट हो जाता है। एक आकस्मिक धक्का समस्त धन वैभव को नष्ट कर देता है। जिन महाराजा रणजीत सिंह का सम्पूर्ण देश में बड़ा भारी प्रभाव था, आज उन्हीं को संतान जेल मे पड़ी हुई सड़ रही है। मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह की संतानें आज दिल्ली में तांगा चला कर अपनी आजीविका चला रही हैं। वृद्धावस्था शरीर का 'नाश कर देती है। फिर भी मनुष्य आत्मकल्याण के प्रशस्त मार्ग को त्याग कर विषवत् भयंकर ऐसे विषयोपभोग में लीन रहते हैं, जो किंपाक फल के समान प्रथम मनोहर दिखलाई देकर परिणाम में विष के समान भयंकर सिद्ध होते हैं।" सोहनलाल जी के इन वचनों को सुन कर महासती जी बोली
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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