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________________ सर्राफे की दूकान एस मग्गे आरिएहिं पवेइए। उहिए नो पमायए ॥ आचारांग सूत्र प्रथम श्रुत स्कन्ध, अध्ययम ५, उद्देशक २ श्रार्यों ने यही मार्ग बतलाया है कि एक बार उद्यत होकर फिर प्रसाद न करे। सोहनलाल जी को पसरूर आए हुए पांच वर्ष हो गए । इस बीच वह बराबर स्कूल में पढ़ते हुए भी अनेक कार्यो में अपनी प्रतिभा का परिचय देते रहे, जिससे सारा परिवार उनकी दिन प्रति दिन होती हुई धर्मश्रद्धा को देख कर अत्यधिक प्रसन्न रहता था। इन पांच वर्षों में सोहनलाल जी ने घर बाहिर सभी के हृदय पर विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया था। किन्तु अब सोहनलाल जी की आयु लगभग बीस वर्ष की हो गई थी। अतएव उनके मामा जी को यह चिन्ता रहने लगी थी कि उनको स्कूल से उठा कर किसी कार्य मे डाला जावे। अस्तु एक दिन उन्होंने सोहनलाल जी से इस प्रकार वार्तालाप किया मामा जी-सोहनलाल ! तुम यह जानते ही हो कि गृहस्थ में रहते हुए गार्हस्थ कर्तव्यों को पूर्ण करने के लिये शुद्ध आजीविका
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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