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________________ मामा जी के कार्य में सहायता १३५ वालों को बड़ी दिक्कत रहती है। इसलिये मेरा विचार है कि उनकी दिक्कत दूर करने के लिये एक बड़ा चबूतरा बनवा दू। इसमें आपकी क्या सम्मति है ? सो वह शिष्टाचार के नाते अवश्य यही कहेंगे कि 'हां, हां, जरूर बनवा लो।' फिर आप उनसे यह भी पूछिये कि चबूतरा कितना बड़ा तथा कहां तक बनवाया जावे। इस प्रश्न पर वह, निश्चय से टालमटोल करेंगे। किन्तु आप उनको विवश कर दें कि वह अपनी ही छड़ी से लाइन खेंच दें कि यहां तक बनवाना ठीक रहेगा। उनके लाइन खींचने पर आप इस काम को भी उनके ही ऊपर डाल दें और कहें कि 'मेहरबानो करके आप ही इस काम को करा। क्योंकि आप भी तो भाई ही हैं। क्या आप इतनी सहायता भी न करेंगे? बस वह आपकी इस प्रकार की सज्जनता देखकर पानी पानी हो जावेंगे और विरोध करना बंद कर देगे।, . सोहनलाल के मुख से यह शब्द सुन कर मामा जी बहुत प्रसन्न हुए। इसके पश्चात् उन्होंने इसी सम्मति के अनुसार कार्य भी किया, जिसमें उनको आशातीत सफलता प्राप्त हुई। इस प्रकार सोहनलाल जी अपने मामा जी की कठिन कार्यों में भी सहायता किया करते थे। घर के दैनिक कार्यों पर ध्यान रखते हुए वह बिना कहे सुने उनको अत्यंत उत्साह के साथ सुचारु रूप से किया करते थे। इस प्रकार सोहनलाल जी अपने अद्भुत कार्यों से अपनी यश दुन्दुभि बजाते हुए यह सिद्ध कर रहे थे कि वह एक यशस्वी पिता के यशस्वी पुत्र हैं। होनहार विरवान के होत चीकने पादा
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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