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________________ १३४ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जो . सहपाठियों के साथ अत्यन्त स्नेहपूर्ण व्यवहार किया करते थे, जिससे उनके मित्रों की संख्या भी शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा के समान बरावर बढ़ती जाती थी। स्कूल का कार्य समाप्त कर आप मामा जी के निजी कार्य से भी चतुरतापूर्वक सहायता किया करते थे। मामा जी भी आपकी प्रखर बुद्धि को विकसित करने के लिए आप से अनेक कठिन कार्यों में परामर्श किया करते थे। एक बार आपके मामा जी ने अपने घर के वाहिर एक चबूतरा बनवाने का विचार किया। वह स्थान कमेटी का था। उन दिनों कसैटी का अध्यक्ष एक मुसलमान था, जो गंडे शाह का विरोधी था। उसका कहना था कि कुछ भी हो, किन्तु मैं चबूतरा नहीं बनने दूंगा तथापि बाह्य शिष्टाचार में वह कोई त्रुटि नहीं होने देता था। एक बार मामा जी ने सोहनलाल जी से कहा मामा जी-सोहनलाल ! यह बतलाओ कि चबूतरा किस प्रकार वन सकता है ? यदि बनवाता हूँ तो मुसलमान अध्यक्ष विघ्न उपस्थित करेगा और नहीं बनवाता हूं तो सारा नगर यही कहेगा कि 'अध्यक्ष से डर गए'। अतएव तुम यह बतलाओ कि इस काम को किस प्रकार किया जाये। इस पर सोहनलाल जी ने उत्तर दिया सोहनलाल-मामा जी! चबूतरा तो बड़ी आसानी से बन सकता है और क्लेश भी उसमें नहीं होगा। मामा जी–सो कैसे ? सोहनलाल-वह मियां जी तो कभी कभी हमारे यहां आते ही रहते हैं । अब की बार जब वह हमारे यहां आवे तो आप उन से कह दें कि 'भाई साहिब ! अन्दर बैठने से आने जाने
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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