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________________ १८ मामा जो के कार्य में सहायता इमेणमेव जुन्झाहि ।। किं ते जुझेण बज्झो ? जुज्झारिहं खलु दुल्लहं ।... . . . आचारांग सूत्र, प्रथम श्रुत स्कन्ध, अध्ययन ५, उद्देशक ३ इस शरीर से युद्ध करो। बाह्य युद्धों से तुम्हें क्या ? युद्ध के योग्य शरीर मिलना कठिन है। ___ महापुरुष का जीवन एक अद्भुत जीवना होता है। वह जहां भी पदार्पण करते हैं वहीं अपने मंगलमय-आचरण से स्वर्ग: का दृश्य उपस्थित कर देते हैं। सोहनलाल जी पन्द्रह वर्ष की, आयु में पसरूर गए थे, किन्तु बाल्यावस्था, होते हुए.भी आपने अपके सद्गुणों के द्वारा अल्प समय में ही सब के हृदय को अपनी ओर आकर्षित कर लिया। आप 'प्रतिदिन प्रातःकाल उठ कर अपने सभी कार्यों को अपने हाथों से किया करते थे। नित्य कर्म से निवृत्त होकर आप मामा जी तथा मामी जी कों नमस्कार किया करते। इसके उपरांत आप धार्मिक क्रिया किया करते थे।। इतना कार्य करने पर आप जलपान करके स्कूल जाया करते थे। स्कूल में भी आप अपने
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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