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________________ १०२ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी लक्ष्मी देवी-बेटा! यह सारी बातें तो में नित्य सुनती रहती हूँ। किन्तु क्या उनके यहां वालों के हंसने खेलने से तेरी परीक्षा पूरी हो जावेगी । तू जो सदा ही दूसरों के मामलों में पड़ कर अपनी पढ़ाई का सत्यानाश कर रहा है विद्यार्थियों के लिये क्या यह उचित है ? लक्ष्मी देवी जव इस प्रकार सोहनलाल को डांट फटकार वता रही थी तो उसके भाई गंडे शाह भी चुपचाप आकर उस कमरे में इस प्रकार खड़े हो गए कि उनकी उपस्थिति का पता सोहनलाल अथवा लक्ष्मी देवी किसी को भी न लगा। गंडे शाह पसरूर ले आज प्रातःकाल ही सोहनलाल को देखने के लिए आए थे। इस समय वह दोनों मां बेटों के वादविवाद का शब्द सुन कर अपने कमरे से निकल कर उनका वार्तालाप सुनने के लिये वहां आ गए थे। लाला गंडा मल जी अपने भानजे सोहनलाल ले विशेष प्रेम करते थे। वह समय समय पर उसको देखने के लिये पसरूर से सम्बडियाल आ जाया करते थे। छुट्टियों में तो वह सोहनलाल जी को प्रायः अपने पास पसरूर मे ही बुला कर रख लिया करते थे। इस समय माता लक्ष्मी देवी सोहनलाल की डांट डपट करती जाती थीं और सोहनलाल उनको हंसते हुए उत्तर दे रहे थे, जिससे लक्ष्मी देवी का क्रोध और भी बढ़ता जाता था। इस पर लाला गंडेमल उन दोनों के बीच में आकर बोल उठे गंडे मल-लक्ष्मी! तू बिना अपराध लड़के को क्यों डांट डपट करती रहती है ? वह तेरा विनय करता जा रहा है और तुझे क्रोध पर क्रोध चढ़ता जा रहा है। उस पर लक्ष्मी देवी ने उत्तर दिया लक्ष्मी--"भइया! इसका अपराध यही है कि यह अपने
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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