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________________ मामा के यहां निवास १०१ अपनी उन्नति कुछ भी नहीं करेगा ? ज्योतिषी तो कहते थे कि __ यह बड़ा भारी विद्वान बनेगा। किन्तु यह लक्षण तो विद्वान् बनने के नहीं हैं। जब तक बच्चा स्कूल में पढ़े हुए पाठ को घर पर याद नहीं करेगा, तब तक वह किस प्रकार विद्वान् बन सकता है ? मैं उसको बार बार समझा कर हार गई, किन्तु पन्द्रह वष की आयु हो जाने पर भी वह इस विषय मे लेशमात्र भी ध्यान नहीं देता। इस में संदेह नहीं कि जब पास पड़ोस की स्त्रियां मेरे पास आकर सोहनलाल के गुणों की प्रशसा करती हैं तो मैं प्रसन्नता से फूल उठती हूं। किन्तु वास्तव में यह बात तो प्रसन्न होने की अपेक्षा खेद की भी कम नहीं है। मेरा बच्चा दूसरों की उन्नति का अधिक ध्यान रखता हुआ, अपनी उन्नति के मार्ग में बाधा उपस्थित कर रहा है। आज भी वह स्कूल से आकर खाना खाते ही कहीं भाग गया। न जाने किसके यहां पंचायत कर रहा होगा ? मैं देखती हूँ कि सोहन हाथ से निकला जा रहा है। उसे अभी से न संभाला गया तो बाद में तो उसका संभलना और भी कठिन पड़ेगा। इस लिए जिस प्रकार भी हो उसे अभी से संभालना होगा।" लक्ष्मी देवी इस प्रकार अपने मन मे सोच विचार कर रही थीं कि सोहनलाल भी कहीं से उस समय आ गया । लक्ष्मी देवी उसको उस समय श्राते देखकर एक दम तेज होकर बोलीं लक्ष्मी देवी-क्या सोहनलाल तू अब भी घर में बैठ कर अपना पाठ याद नहीं कर सकता ? सोहनलाल-माता जी ! मैं धारी के मामा के यहां गया था। उसकी मामी ने तीन दिन से भोजन नहीं किया था। घर मे झगड़ा मचा हुआ था। अब वहां सब खुश होकर हंस खेल
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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