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________________ जैन पूजाँजलि निज स्वरुप में थिर होना ही है सम्यक चारित्र प्रधान । परम ज्योति आनद पूर्णत है सम्यक चरित्र महान ।। ॐ ह्री श्री पचनमस्कार मत्राय ज्ञानावरणीकर्मविनाशनाय जल नि । दर्शनावरणी क्षय करने चिर अविरति का करूँ अभाव । यह ससारताप क्षय करने प्राप्त करूं निज शुद्ध स्वभाव। णमो ।।२।। ॐ ह्री श्री पचनमस्कारमत्राय दर्शनावरणी कौवनाशनाय चन्दन नि । वेदनीय की पीडा हरने करवू पच प्रमाद अभाव। अक्षय पद पाने को स्वामी प्राप्त करूँ निजशुद्ध स्वभाव।। णमो ।।३।। ॐ ह्री श्री पचनमस्कार मत्राय वदनीयकर्मविनाशनाय अक्षत नि । मोहनीय का दर्प कुचल, कर पूर्ण कषाय अभाव । कामबाण की व्याधि मिटाऊँग्राप्त करूँनिज शद्ध स्वभाव ।।णमो ।।४।। ॐ ह्री श्री पचनमस्कार मत्राय मोहनीयकर्म विनाशनाय पुष्प नि । आयु कर्म के सर्वनाश हित शीघ्र करूं त्रय योग अभाव । क्षुधा व्याधि का नाशकरूँमै प्राप्तकरूँ निज शुद्धस्वभाव णमो ।।५।। ॐ ह्री श्री पचनमस्कारमत्राय आयुकर्म विनाशनाय नैवेद्य नि नाम कर्म का मूल मिटाटू नष्ट करूंमै मब विभाव । भ्रम अज्ञान विनाश करूँमै प्राप्त करूँनिज शुद्धस्वभाव ।।णमो ।।६।। ॐ ह्री श्री पचनमस्कारमत्राय नामकर्म विनाशनाय दीप नि । गोत्रकर्म को दग्ध कमै कर्म प्रकृति सब करूंअभाव । अष्टकर्म विध्वस करूँमै प्राप्त करूँनिज शुद्ध स्वभाव।। णमो ।।७।। ॐ ह्री श्री पचनमस्कारमत्राय गोत्रकर्म विनाशनाय धूप नि अन्तगय मूलोच्दोद कर सर्व बध का करूँअभाव । परममोक्ष फल पाऊँस्वामी प्राप्त करूँनिज शुद्धस्वभाव ।।णमो ।।८।। ॐ ह्री श्री पचनमस्कारमत्राय अन्तरायकर्म विनाशनाय फल नि परमभेद विज्ञान प्राप्त कर करनँ मै समार अभाव । पद अनर्घ पाने को स्वामी प्राप्त करूँनिज शुद्ध स्वभाव ॥णमो ९० ॐ ह्री श्री पचनमस्कारमत्राय अनयंपदप्राप्ताय अर्घ्य नि
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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