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________________ श्री णमोकारमत्र पूजन संयम तप बैराग्य न जागा तो फिर तत्व मनन कैसा ।। निज आतम का भानु न जागा तो फिर निज चितन कैसा ।। हे प्रभु मुझे मार्ग दर्शन दो अब मैं आगे बढ़ जाऊँ । अणुव्रत धार महाव्रत धाऊँ गुणस्थान भी चढ जाऊँ ।।७।। परम पचकल्याण विभूषित जिन प्रभु की महिमा गाऊँ। घाति अघाति कर्म सब क्षयकर शाश्वत सिद्ध स्वपद पाऊँ।।८।। ॐ ही श्री तीर्थकर गभ जन्म तप ज्ञान मोक्ष पचकल्याणकेभ्यो पूर्णाऱ्या नि । तीर्थंकर जिन देव के पूज्य पत्र कल्याण । भाव सहित जो पूजते पाते शाति महान ।। इत्याशीर्वाद जाग्यमन्त्र ॐ ह्री श्री जिन पचकल्याणकेभ्यो नम । श्री णमोकारमंत्र पूजन ॐ णमो अरिहताण जप अरिहतो का ध्यान करूँ। णमो सिद्धाण जप कर सिद्धो का गुणगान करूँ।। ॐ णमो आयरियाण जप आचार्यों को नमन करूँ। ॐ णमो उवज्झायाण जप उपाध्याय को नमन करूँ।। णमो लोए सव्वसाहूण जप सर्व साधुओ को वन्दन । णमोकार का महा मन्त्र जप मिथ्यातम को करूं वमन।। ऐसो पच णमोयारो जप सर्व पाप अवसान करूँ । सर्व मगलो मे पहिला मगल पढ मगल गान करूँ ।। णमोकार का मन्त्र जपू मै णमोकार का ध्यान करूँ। णमोकार की महाशक्ति से निज आतम कल्याण करूँ ।। ॐ ह्री श्री पंचनमस्कारमन्त्र अत्र अवतर अवतर सवौषट ॐ ही श्री पच नमस्कार मन्त्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ ॐ ह्री श्री पच नमस्कार मन्त्र अत्र मम सनिहिता भवभव वषट्। ज्ञानावरणी कर्मनाश हित मिथ्यातम का करूँ अभाव। जन्म मरण दुख क्षयकर डालूँ प्राप्तकरूँ निज शुद्धस्वभाव।। मनीकार कर मन्त्र जपे मैं णमोकार का ध्यान करूँ। णमोकार की महाशक्ति से नाथ आत्म कल्याण करूँ ।।
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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