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________________ ५९ श्री णमोकारमत्र पूजन जीव स्वय ही कर्म बाधता कर्म स्वय फल देता है । जीव म्वय पुरुषार्थ शक्ति से कर्म बध हर लेता है ।। - - जयमाला णमोकार जिन मत्र का जाप करूँदिन रात । पाप पुण्य को नाश कर पाऊँमोक्ष प्रभात ।। छयालीस गुणधारी स्वामी नमस्कार अरिहतो को । अष्ट स्वगुणधारी अनन्तगुण मडित बन्दू सिद्धो को।।१।। है छत्तीम गुणो से भूषित नमस्कार आचार्यों को । है पच्चीस गुणो से शोभित नमस्कार उपाध्यायो को।।२।। अट्ठाईस मूल गुणधारी नमस्कार सब मुनियो को । ॐ शब्द मे गर्भित पाँचो परमेष्ठी प्रभु गुणियो को।।३।। सर्व मगलो मे सर्वोत्तम सर्वश्रेष्ठ मगलदाना । ही शब्द मे गर्भित चौबीसो तीर्थकर विख्याता ।।४।। णमोकार पैतीस अक्षा का मत्र पवित्र ध्यान कर लूँ ।। यह नवकार मत्र अडसठ अक्षर से युक्त ज्ञान कर लूँ |५|| "अर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधु नम" भज लूँ। सोलह अक्षर का यह पावन पत्र जपूँ दुप्कृत तज लूँ।।६।। छह अक्षर का मत्र जपू “अरहत सिद्ध" को नमन करूँ। "अ मि आ उ सा" पचाक्षर का मत्र जपू अघशमन करूँ ।।७।। अक्षर चार पत्र जप लु “अरहत" देव का ध्यान करूं। “अर्हम्' अक्षर तीन, मत्र जप स्वपर भेद विज्ञान करूँ ।।८।। दो अक्षर का "सिद्ध मत्र जप सर्व सिद्धिया प्रकट करूं। अक्षर एक "ॐ" ही जपकर सब पापो को विघट करूँ।९।। सप्ताक्षर का मत्र “णमो अरहताण" का मै जाप करूँ । छह अक्षर का मत्र “णमो सिद्धाण' जप भवताप हरूँ।।१०।। सप्ताक्षर का मन “णमो आइरियाणं"जप हर्षाऊँ । सप्ताक्षर का “णमो उवज्झायाण" जप कर मुस्काऊँ ॥११॥
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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