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________________ (४७) नुभव सिद्ध दोपोंका अनादर करके क्षणिक वादको चाहता हुआ, हे भगवन् । यद्विपरीत युद्ध अहो । पैसा साहसिकहै ? साहसिक उसे कहते है कि जो काम करते वक्त यह नही विचारता कि इस काम करनेसे आयदेश हमे कैसी घोर वेदना सहन करनी पडेगी।सो बुद्धनेभी यह नहीं सोचाकि विचारगील मानव मेरे इस लेखको पढकर मुझे वैसा समझगे। बस, इस मुवसर मतरबका बयान कर अप मुफस्सल हाल वयान दिया जाता है। गौर पढ़ें। मिय पाठको! प्रथम वौद्ध लोग हमारी तरह आत्माको नहीं मानते । किन्तु बगेर आत्म गुणीके बुद्धि गुण __मानते हैं । उसीभी स्थिति क्षणमात्र मानते हैं। अर्थात् उन या वहना हैकि प्रथम क्षणमें जो बुद्धि क्षण पैदा होता है, वो उस सणके अन्तमें नाश होता है । तर उस्की जगहपर दूसरे क्षण पुदिका दूसरा क्षण पैदा होता है, और दूसरेपी जगह तृतीय क्षणमें तीसरा पैग होता है । इसी तरह चुदि क्षण परपग चली जाती है । जिस्को ये लोग आत्मा मानते हैं इससे मध्यस्थ गण अच्छी तरहसे समझ गये होंगे, कि इस तरह मासे आमा क्षणिक सिद्ध हुआ । क्योंकि वृद्धिही इसके पास जाता है, और युदि क्षण उपरात ठहर नही सक्ती । इस लिये इस क्षणिक वादो मानने से नीचे लिखे
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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