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________________ (४६) अगर कहोगे उस्में घट उत्पन्न करनेका स्वभाव तो है, मगर विना निमित्त के घट नहीं बन सक्ता । तो हमारी तरफसे . भी यही जवाव समजें, कि घटमें नाश होनेका स्वभाव तो पेश्तरसेही होता है। मगर जबतक मुद्रादिक निमित्त नहीं मिलते, घट फूट नहीं सत्ता । हां वेशक, पोयें तो जरूर पलटती रहेगी । मगर बिना निमित्त के सर्वथा नाश नहीं होता। बौद्ध-अच्छाजी, यह तो बात मान ली । मगर और भी क्षणिकवादके खंडनकी युक्तिये सुना दीजिये । अगर मुझे ठीक मालुम हुइ तो मान लूंगा। जैन-देखिये ! आपके क्षणिक बादकी अश्लीलताको दिखलानेके लिये कलिकाल सर्व श्री हेमचंद्राचार्यजी महाराज स्याद्वादमंजरीमें क्या फरमाते हैं । जरा श्रवण कीजिये । कृत प्रणाशा कृत कर्म भोग, भव प्रमोक्ष स्मृति भङ्गदोपान् ॥ .. उपेक्ष्य साक्षात् क्षण भङ्ग मिच्छ ॥ नहो महा साहसिकः परस्ते ॥ १॥ __ मतलब-किये हुए कर्मका नाश और विना किये हुएका भोग २ भवभंग ३ मोक्षभंग ४ स्मातभंग-५ इन साक्षात् अ
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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