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________________ जर पदार्थ सिद्धि हुइतो फिर घटवत् वोभी क्षणभगुर हो जायगी । इसलिये घटकी वासना घटके साथही पूर्व क्षणमें विलय होजायगी । बतलाइये, फिर उत्तर क्षणको कैसे पैदा कर सकेगी, अगर कायम रहनाभी माना जावे तोभी घटसे भिन्न वासना घटको पैदा नहीं करसक्ती है । जैसे पटपर रखे हुए घटके फूट जानेपर पट घटोत्पादक नहीं बनसक्ता । इसी तरहसे पटके नष्ट होजानेपर अवशिष्ट वासना घटसे भिन्न होनेके सबसे घटोत्पादक नहीं बन सक्ती । अगर कहोगे अभिन है तो फिर कहनाही क्या वो तो घटके साथही नाश हो जायगी। क्योंकि वो उससे अभिन्न है। इसलिये आपका क्षणभगुर मत किसी तरह साबित नहीं हो सकता है । चौद्ध-हमने आपको क्षणभगुरकी सिद्धिमें एक युक्ति ताई थी कि पैदा होता हुआ घट विनश्वर पैदा होता है या अविनश्वर ? इस्या क्या जवाब है ? जैन-हम आपको इस बातके जवामें प्रथमभी एक युक्ति पता चूके है । अगर इससे आपकी तसल्ली नहीं हुइ तो लीजिये । अव दूसरी युक्ति देता हू । ध्यान लगाकर श्रवण करें । साणमें रदी हुइ मिट्टीमें घट पैदा करनेका स्वभाव है या नहीं ? अगर है तो फिर कुलाल आदि निमित्तकी क्या जरुरत ? खुर वखुद घट क्यों नहीं बनजाते ?
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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