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________________ (४४) __जव उस्का कारणही घट सर्वथा नष्ट होगया तो कार्य रूप घट कैसे हो सकेगा ? जैन-जरा विचार तो करना था कि मेरी दलील कहाँ ___ तक चलेगी। बगैर विचारे कथन करने वाले शालार्थमें कभी कामयाव नहीं होते । क्या आपके मतम कार्य कारण भाव भाव ठहर सकता है। जो मिसाल देते हो कि उस्का कारण नष्ट होगया। यादरहे, आपके मतमें पदार्थोका क्षणभंगुर __ माननेकी वजहसे कार्य कारण भाव कभी नहीं होसक्ता। क्योंकि जब प्रथमके क्षणमें प्रथम घट नष्ट होगा, तबही दूसरे क्षणमें दूसरा पैदा होगा। एक क्षणमें दोनोंके अस्तित्वको तो आप कबूलही नहीं रखते । कहिये, अब दूसरे क्षणमें पैदा होनेवाले घटका प्रथम क्षणवाला घट कारण कैसे बन सक्ता है ? अगर ऐसे वैसेही कारण मानलोगे तो मृतपति से भी खीयोंमें संतान उत्पत्ति होना चाहिये, मगर होती नहीं । इमसे साफ मालूम होता है कि आपका कथन अकलसे वहीद है। वौद्ध-हम वासनाको मानते हैं, इसलिये घटके नष्ट होजानेपरभी वासना रहती है । इस सबसे उत्तर कालीन घट पैदा होताहै । बतलाइये, इस बातमें क्या शक है ? जैन-वतलाइये, वो वासना घटसे भिन्न है या अभिन्न ? अगर कहोगे भिन्न है तो वोभी पदार्थ स्वरुपमें आजायगी ।
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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