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________________ (४३) मतीति नहीं करानेके स्वभाववालेमें अखीरके नाश वक्त प्रतीति करानेका स्वभार फहाँसे आया ? क्योंकि आपके मतम जैसे प्रथम क्षणमें "घटोवस्त क्षणभगुरत्वात" अर्थात् क्षणभहगुर होनेसे घटका नाश हुआ ऐसे मामुली तोरपर इत्म होता है । वैसेही जखीरके क्षणभी मामुली तोरपर इत्म होना चाहिये था ? साफ तोरपर मनीति पयों होती है ? हमारे इस समारनेही आपके मुचकुरापाले सवालको नष्ट कररिया। इससे आप नववी समझ गये होंगे कि पैदा होते वक्तका विनश्वर-अविनश्वरवाला सवाल विपुल फजूल है । और देखिये, आपके मानोके मुतारिक वहांपर ठीकरी नहीं होनी चाहिरे थी। परन्तु घटके फूट जाने पर ठीकरीयें अवश्यमय होती है, और हम तुम प्रत्यक्ष देखते हैं। तो यह सवाल आपपर जरुर आयद होगा कि वहांपर ठीकरीयें अवशिष्ट क्यों मालग होती है ? यत' नर हुए घटके म्यानमें दूसरा घट पैदा होजाना चाहिये । इसलिये कि आप का यह मानना है कि प्रथम क्षणम घडा नष्ट होजाता है। दूसरे क्षणमे उस्की जगह और पैदा होता है । तीसरे क्षणमें और इत्यादिक। बौद्ध-यह आप क्यन अविचारित है। क्योंकि दूसरे क्षणमें पैदा होनेवालेका प्रथम क्षण विवर्ति घट कारण है ।
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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