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________________ (४२) चौद्ध-आखरी समयपर कोई पदार्थ क्यों नहो ? अगर रुपी होगा तो उस्के नाशकी मतीति जरुर ोगी। मगर क्षण विनश्वर स्वभावसे नष्ट होता पदार्थ दिखलाइ नहीं देना। कारण कि उस्में स्वभावही ऐसा है तो फिर तर्क दिल वालवा करते हो ? ___ जैन-अच्छा, जाने दीजिये । इस वानके पेडनर यह मुनाइयेकि अगर आप क्षणभंगुर पदार्थके स्वरूपको न स्वीकारते; और हमारी तरह पदार्थ स्वरुपकी अवस्थिति मानते तो क्या हर्जकी वातथी ? चौद्ध-हमारा यह मानना है कि जब पदार्थ पैदा होता है, उसी वक्त उस्में क्षणभंगुर स्वभाव पड़ जाता है । यानि उत्पत्ति कालसेही पदार्थमें यह स्वभाष पाया जाता है । युक्तिकी तरफ निगाह करें ! अगर इनमें क्षणभंगुर (क्षणमात्रमें नष्ट होजाना) स्वभाष पहिलेसे न माना जाये तो मुद्गरादिकके पतन कालमेंभी नाश होनेका स्वभाव नहीं हो सक्तां । क्योंकि अगर घडा पैदायश कालमें अविनम्वर स्वभाव था तो विनश्वर स्वभावधाला कैसे हो सकेगा ? इसलिये प्रथमसेही विनश्वर पैदा होता है, ऐसाही मानना ठीक है। जैन-अब हम आपसे पूछते हैं । बतलाश्ये प्रथम निर्मूलसे नाश होते हुएभी लोगोंको निर्मूलसे नाशकी
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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