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________________ ( २८७) कहते हैं । दृढ निश्चयसे अभ्यास चलता रहता है । अभ्यास करते • कुछ दिन बाद उस कार्यके सम्बन्धमें विशेष बोध होता है, और इस प्रकारके चोध होनेसे पूरा विश्वास जमता है । विश्वासहीसे मन आसक्त होजाता है और दृढ विश्वास सहित अभ्यास करनेसे मनकी एकाग्रता होती है । मनकी एकाग्रता होनेके उपरान्त निज भ्यासकी दशा माप्त होती है और निज याससे फिर इच्छित कार्य सफल होता है अर्थात ईश्वरका प्रत्यक्ष अनुभव, पुर्ण ज्ञानकी प्राप्ति, ब्रह्मादान्द जन्म मरणसे मुक्त, इत्यादि जो कुछ कहते हैं सो अवश्य होता है। उक्त पातका ही हम अब दूसरे प्रकारसे रिपेचन करते हैं। मनुष्य के मुख दुख, लाभ हानि, जय पर कुछ उसके विचारही पर आधार रग्वते हैं। जिसके जैसे विचार होते है पहुधा वैसेहो उसके काम हुआ करते हैं, और जिस प्रकारके संस्कार होते है उसी प्रकारके उसको विचार उत्पन होते है । मनुप्य अपनी बुद्धिसें उन सत्यासत्य विचारोंको जान सकता है इतना ही नहीं परन्तु उनके मूल कारण जो सरकार ह उन्हें भी सुधारनेमें समर्थ हो सकता है। शुद्ध विचारोंके सेवन करनेसे सारासार विवेक बुद्धि सदा बनी रहती है । आचरणके उल्म होनेकी पात भी विकारही आश्रित है । जिसके विचार शुद्ध हैं उसके
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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