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________________ ( २८६ ) न करनेके अर्थ, अथवा अन्य और अत्यन्त विचार पुर्वक ठहराइ हुइ ईश्वर सम्बन्धी व्यवस्थामें कांटे विखेरकर, बहुत कुछ हानि पहुंचाई है। ___ भक्ति शब्दका अर्थही श्रद्धा अर्थात् प्रोनि है । मनुष्य मात्रकी श्रद्धा सुखरूप वस्तुमें रहती है, और इस वातका पहिलेही निर्णय हो चुका है कि पुर्ण सुख रूप केवल एक ___ ईश्वर है. इस लिये मनुष्य मात्रकी श्रद्धा इश्वर पर होना इष्ट है। यथोचित् नियम और श्रद्धा पूर्वक अभ्यास करनेवाले मनुष्य कम मिलते हैं और जो इस प्रकार करते हैं वेहो अपने कार्यमें सफलता प्राप्त करते हैं । ___ सर्व साधारण मनुष्योंको चाहिये कि सबसे पहिले किसी अनुभविक और परोपकारी सज्जनसे ईश्वर सम्बन्धी वातोंका इस प्रकार श्रवण करें जिससे उनके अन्तः करणमें सबी रूचि उत्पन्न हो । फिर उसकी भक्ति करनेकी कितनी कुछ आवश्यकता है और जिन मागासे उसकी भलि होती है उन्हेंभी ठीक २ जानलें । तिस पीछे अपनी रुचिके अनुकूल जो मार्ग अपने लिये उत्तम ठहरताहो उसे उत्साह बुद्धिसे धारण करें, और नियम वांधकर उसके अनुसार अभ्यास किया करे । इस प्रकार अभ्यास करते रहनेसे उसका व्यसन हो जाता है। आत दृढ व्यसनके परिणामही को स्वभाव
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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