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________________ (२८८ ) आचरण भी ठीक होने हैं, और जिसके विचार ही बुरे हैं तो उसके आचरणका क्या कहना ! पारमार्थिक विषय तो क्या, पर सांसारिक व्यवहार-कुशलता की भी तो जड़ सदाचरणही है । इसलिये प्रत्येक मनुष्यको उचित है कि सबसे पूर्व अपने विचारोंकी और योग्य ध्यान देवे ! बुरे २ विचा रोंके कारण बुद्धि जड़ होती जाती है और अन्तमें उसकी किसी भी बातमें ठीक भला बुरा जानने की ताकत जाती रहती है। ऐसेही दिन रात अच्छे विचारोंके सेवन करते रहने से बुद्धि तीव्र होती जाती है, और अभ्यासके बढ़नेसे केवल धारणाशक्ति ही नहीं किन्तु कल्पनाशक्ति भी बड़ी उत्कृष्ट हो जाया करती है। बुद्धिके ऐसे प्रवाहको फिर एकाग्रतासे धीरे २ वढानेका, प्रयत्त करनेसे थोड़े ही कालमें मनुष्य एक ऐसी दशाको प्राप्त हो जाता है, कि जिस विषय को वह श्रद्धा और निश्चय पूर्वक ग्रहण करे, इसके प्रवाहके वलसे वह उस विषय सम्बंधी कई नई २ बातोको स्वयं ही जानने लग जाता है। __ धर्मसे बढकर मनुष्यका सच्चा साथी कोई नहीं है। जिसने संसारमें आकार धर्मको समझकर उसके साथ सम्बंध कर लिया, उसने सव कुछ किया । जो सद्धर्मका पक्ष लेता है उसकी हो उन्नति होती है। ये बाते जैसे प्रत्येक व्यक्ति पर घटती हैं, वैसेही प्रत्येक जाति किंवा देश परभी
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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