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________________ ( २६७ ) लायक माने जा सकते हैं जिनका मन कई जन्मोंके पापकर्म रूपी रक्तपित्तीसे अत्यन्त दृपित हो रहा है और जिनका शरीर दुराचरणोंसे मानो ग्रसित हो रहा है। ऐसे महारोगियोसे राजाकी मुलाकात न होनेसे ऐसा कदापि नहीं कहा जा सकता है कि राजाही नहीं है उसी प्रकार निय विषयोंके भोगमें फसे हुए लोगोको ईश्वर दिखाई नहीं देनेसे उनका यह कयनभी है कि ईश्वर हैही नही, मी सत्य नहीं माना जा सकता है। अपनेसे जिनकी बुद्धि करोडो गुणी वदी थी, जिनका ज्ञान रूपी दुर्मीन मूद मसे मम पदार्थ यहातक कि मनकी गुप्त बातोकोभी जान जाताया ऐसे अपने पुर्व पुरप पहपियोंके निर्माण किये हुए ग्रथादिसे स्पष्ट जगना जाता है, और सर देगाके धर्म प्रवर्तकभी कहते ह कि इ पर है। अपनेसे अधिक बुद्धिमानांनी वातको जर फि व्यवहारिक विपयोंमें अपन अद्धा पुर्वर मानते है तो ईश्वरको नेसरी वातका भी मानना उचित है। तर्कसे विचार किया जाय तोरस विषयम असरय ममाण मिले बिना नहीं रहते है। ई-वर गका अर्थही ईग नियममें रग्बना, पर-श्रेष्ठ-होता है। इन दोनों पदासे सारे जगत्को निरमने रखने वाली किसी श्रेष्ठ मत्ताका होना
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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