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________________ ( २६८ ) सिद्ध होता है । यदि ध्यान पुर्वक देखाजाय तो इन ब्रह्मांडमें असंख्य प्राणि पदाथाके विषयमे रहनसेभी किसी एक सत्ताका होना इष्ट जान पड़ता है। यदि किसी वर्गको नियममें रखने वाला शिक्षक न हो तो, उस वर्गमें कैसी अव्यवस्था मचजाती है तो फिर ब्रह्मांडको नियममें रखने वाली शिक्षा का देनेवाला जो कोई नहो तो, दस बन्नांडकी सम्पुर्ण बातें भी होना स्वाभाविकही है। परन्तु सम्पुर्ण वाने नियम पुर्वक होनेसे किसी नेताका होना स्पष्ट सिद्ध होता है । कितनेक लोग कहा करते हैं कि संसारकी व्यवस्था " नेचर हीसे हुआ करती है, ईश्वर का नहीं है । उनका यह कथन अंगिकार करनेके साथही हम उनसे यह पुंछते हैं कि "नेचर" क्या है? ऐसी दशामें वे लोग 'नेचर' शब्द के स्वरूपका स्पष्टीकरण यही करेंगे कि जिन नियमोंके बलसे जगत चलरहा है उन्हें "नेचर"कहते हैं। अपन कहते हैं कि जिन नियमोंके बल से जगत् चल रहाहै उन्हेही ईश्वर कहना चाहिये । अपन संस्कृत शब्दका उपयोग करते हैं और वे अंगरेजी शब्दको काममें लाते है। जगत " नेचर" से चलता है-यह बात जैसी वैसी-जगतका नेता ( मार्गदर्शक ) ईश्वर है-गह वात नहीं रुचतो है. यह ईश्वर जैसे मार्मिक शब्दपर कैसा हास्य जनक कटाक्ष ! इस बातको तो सभी स्वीकारते हैं कि जगतकी
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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