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________________ ( २६६) दे दो, और पदवीके प्रतापसे जो द्रव्य प्राप्त होता हो उसकी एक गंठडीभी बंधा दो ? " इस गँवारकी इन वातोंपर जो वह प्रोफेसर हंसे, तब वह गंवार उस प्रोफेसरको ढोंगी पाखंड़ी कहकर उसका तिरस्कार करे तो क्या उस गंवार मनुष्य की ये सारी बातें विक्षिप्तपनकी नहीं मानी जायगी ? जिन साधनों द्वारा परमेश्वरका प्रत्यक्ष अनुभव होता है उनके अनुसार कृति किये विना और उस कृतिमें जितना समय लगना चाहिये उसका सहस्रांश भागमी लगाये विना "अभी इसी घड़ी यहांके यहीं ईश्वरको यदि बताओ तो हम मानेगे" विना विचारसे ऐसे वाक्य बार २ बोलते समय और तो क्या पर पढ़े लिखे लोगभी शरमाते हैं !!! किसी राजासे मिलना हो तो उसके मिलने में कितने साधन चाहिये ? मान लिया जाय कि किसी बड़े राजासे एक ऐसा हलका आदमी मिलना चाहता है, जिसके सारे श. रीरमें रक्तपित्ती फैली हो और चाहिये वैसे वलादिमी पहिननको न हो तो क्या उसकी उस राजासे मुलाकात होसक्ती है ? जब कि राजाके पास जाने के लिये ठोक २ योग्यता और साधन प्राप्त हुए विना राजासे मिलना कठिन होजाता है; तब फिर करोडों राजाओंकामी राजा जो परमेश्वर है उसको देखनेकी इच्छा रखने वाले ऐसे मनुष्य किस प्रकार
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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