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________________ __ क्योंकि चेतनाके विना जड शरीरमें "अह प्रत्यय" (मै हु ऐसा सयाल) नहीं होसकता । जैसे एक जड पदार्थहै तो इसमें अहं प्रत्यय अर्थात् मै हू ऐसा खयाल कभी नहीं होसकता है । नास्तिक-आपकी समझमे भूल है हम का कहते हैं कि शरीर जड है, हमारा यह मानना है कि चैतन्यताके योगसे शरीर चेतनायुक्त होता है। जैसे आपलोग गरीरसे अलग आत्माको मानकर उसमें चेतनाको मानते है । दम बगेर आस्माकेही शरीरके कार्य ज्ञानको मानते हैं । इसलिये आपका शरीरको जड समझकर परहेजकर आत्माको मानना ठीक नहीं है । आस्तिक-चतलाइये। जरा शरीरका कार्यज्ञान से होसक्ता है ? क्योंकि चेतना जीवका धर्म है न कि शरीरका । नास्तिक-चेनना जीवका धर्म आपा यह कथन वृथाहै, क्योंकि इसमें कोई प्रमाण नहीं है । बगेर प्रमाणके कोइ वात नही मानी जाती अगर बगेर ममाणकेही आत्मा मानोगे तो तो आकाश कुममकोभी सिद्ध मानना पडेगा। अत गरीरकाही अन्वय व्यतिरेकसे ज्ञान कार्य हो सकता है। देग्विये ? अब सिद्धार दिखलाता है। अन्वय उसे कहतेहे कि हेतु के होनेपर हेतु मदया होना पाया जाता है । मसलने आके होनेपर आगका होना पाया जाता है । सा यके अभावमें साधनके अभावफा विचार करना इसे व्यतिरेफ फहतेहैं । मसग्न भागके
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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