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________________ (८) अभावसे धुंआका अभाव मालुम करना । तथाहि साध्य साधन भावोहि भावयोर्या दृगिष्यते तयोरभावयोस्तमादिपरीतः प्रतीयते ॥१॥ ___ मतलब उपरकी इवारतमें हल है । गौर करें ! अन्वय व्यतिरेकके स्वरूपको समझाकर अव अन्दय व्यतिरेकसे ज्ञानको शरीरका कार्य सिद्धकर दिखलाता हूं। आस्तिक-अच्छा सुना दीजिये ? मैं चाहताहूं कि आप कुछ सुनावें ताकि आगे जाकर आपके मंतव्यको मैं अच्छी बरहसे खंडन करूं। नास्तिक-हमारे ध्रुव मंतव्यका खंडन आप कभी नहीं कर सकते। आस्तिक-इस वातसे क्या लेना लोग खुदही हमारी तुमारी युक्तियोंसे जान लेंगेकि किसकी युक्ति प्रवल है। इस लिये अव प्रस्तुत विषयको श्रवण कीजिये ! ___ नास्तिक-हम शरीरके कार्य ज्ञानको इस लिये मानते हैं कि जबतक शरीर है तब तकही ज्ञान है । शरीरके नाश होने पर ज्ञानका भी नाश हो सकता है। इसका प्रमाण इस प्रकार हैयत्खलु यस्यान्वयव्यतिरेकावनुरोति तत्तस्य कार्य।
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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