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________________ (६) नास्तिक-आत्मामें स्थूलता (मोटापन) वा कृशता (पनलापन) नहीं होती। क्योंकि यह वात शरीरमें देखी जाती है । इसलिये इस शारीरिक भावनाको आत्मिक भावना समझना आपकी वडी भारी भूल है। आस्तिक-" याद रखना !-इस व्रतका जवाब मैं आगे जाकर दूंगा क्योंकि अभी में प्रसंग नहीं समझता । आगे जाकर मुझे आपके तोडे हुए प्रमाणोंकी सिद्धि करना है इसलिये आपको मौका दिया जाता है । वोलना हो उतना बोल लेवे; विना प्रसंगके आप वोल नहीं सकेंगे ऐसी जगहपर __ में खडा हो जाउंगा। नास्तिक-"घट महं वेद्मि" याने घडेको मैं जानता हूं। इससे आत्माकी सिद्धि होती है ऐसी प्रतीति आत्माके होने परे ही होगी। क्योंकि वगेर ज्ञानके यह प्रतीति नहीं हो सकती है और आत्माहीका ज्ञान गुण है इसलिये ज्ञान की सिद्धि आत्माके अभावमें नहीं हो सकती है । ऐसा मत कहना । क्योंकि यह प्रतीति भी शरीरमें होती है सिवाय शरीरके आत्माका साक्षाकार नहीं होता है। अगर अनहुइ वातको मानोगे तो कल्पनाका पारावार नहीं रहेगा और प्रतिनियत वस्तुका अभाव होजायगा।' आस्तिक-मित्रवरं आपका यह कहना बिलकुल वृथा है। RAN ।
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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