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________________ ( १९२ ) एग पिअ मरण दुहं अन्न अप्पांवि सिपए नए । एगच माल पडणं अन्नं लुगडेण सिरिधाओ। अर्थः-एक तो प्यारे स्वजनके मरनेका दुःख, दूसरा उसके वास्ते रोकूटकर आत्माको नरकादि दुर्गतिमें डालना यह कोनसा न्याय कि एक तो मेडी परसे गिरना फिर और उसपर लकड़ीका मार अर्थात् कोई ऊपरसे गिरा और उसके हाथ पाव टा और उसके साथ उसपर लकडीकी मार पडे तबह कैसा कष्ट उठाता है ? ऐसेही मूर्खलोग अपने मुटुम्बीके मरनेके दुःखके साथ २ रो कूटकर आत्माको नरकादि दुर्गतिम डालते हैं! ऐसे खुल्ले शब्दोंसे रोने कूटनको निषेध ठहराया है तो ऐसी चाल किसलिये जारी रखतेहो ? ऐसा घातकी रिवाज जारी रखनेसे अपनने अपना मान घटाया है, दूसरे लोगों में हाथसें करके हँसी करवाई है, समझवान व असमझवान, चतुर और मूर्ख, पढेहुए और अपन, सर्व जने घातकी जुल्मी निलज्ज और दुःखदाई रूढीके ताने होकर अपने सर्व प्रकारके सुखमें एक बड़ा भारी भएका सिलगा रख्खा है, सुशील जैन वान्धवों ! आप उत्तम विधा सम्पादन कर सच्चा क्या है और झूठा क्या है यह समझने लगे हो, रोने कूटनेकी निर्लज्ज चाल रूपी वेडीके बन्धनमें आकर आपका दिल तो जलता होगा,
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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